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राफेल डील पर मोदी ने सुप्रीम कोर्ट से बोला झूठ, पकड़े जाने पर कहा सुप्रीम कोर्ट की समझ में गलती।



नमस्कार दोस्तों,
दोस्तों, जैसा की आप सब जानते है कि राफेल डील मामले में मोदी सरकार को विपक्षी दल ने घेर रखा है और इस मुद्दे की वजह से भारतीय जनता पार्टी जनता के बीच अपना भरोसा भी खोटी जा रही है। इस मुद्दे पर देश की सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनते हुए भारतीय जनता पार्टी को क्लीन चीट देदी और इसी के साथ सभी भाजपा समर्थक कांग्रेस पर टूट पड़े। पर बीजेपी की यह खुसी ज्यासा समय तक नहीं ठीक पाई क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जिस सीएजी रिपोर्ट का हवाला देते हुवे केंद्र सरकार को क्लीन चीट  दी थी असल में मोदी सरकार ने वह झूठी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की थी। पीएसी के अध्यक्ष ने इस बात से साफ़ इंकार कर दिया और कहा की उनकी जानकारी में राफेल डील से सम्बंधित कोई रिपोर्ट बना ही नहीं। 

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अब इस मामले में झूठ पकडे जाने पर  मोदी सरकार ने बचाव में अपनी सफाई पेश करते हुए कहा है कि हमने कोर्ट को कोई झूठा रिपोर्ट नहीं दिया बल्कि हमारी दलील को कोर्ट ने ही गलत समझा.
मोदी सरकार ने शनिवार को राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर शीर्ष न्यायालय के आये फैसले के एक पैराग्राफ में संसोधन की मांग की है जिसमें नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (पीएसी ) रिपोर्ट और संसद की लोक लेखा समिति (सीएजी ) के रिपोर्ट का जिक्र किया गया है. मोदी सरकार ने कहा है कि कोर्ट द्वारा जांच रिपोर्ट की अलग अलग व्याख्या किये जाने की वजह से विवाद उत्पन्न हो गया है। 

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केंद्र ने अपनी याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ  क्रमांक 25 के दो वाक्यों पर कहा है कि यह शायद  उस नोट पर आधारित है जिसे केंद्र ने मुहरबंद लिफाफे में मूल्य विवरण के साथ जमा किया था लेकिन अदालत द्वारा इस्तेमाल किये गए शब्द से विपक्ष द्वारा इसका अलग मतलब निकाला जा रहा है.
केंद्र ने इस वाक्य का मतलब साफ करते हुए कहा कि वह यह नहीं कह रहा कि पीएसी रिपोर्ट का सीएजी  ने जांच किया था या संपादित हिस्से को संसद के समक्ष विमर्श के लिए रखा गया .  केंद्र ने इस नोट पर हुई गलत फहमी को स्पष्ट करते हुए कहा किया कि नोट में कहा गया है कि सरकार पीएसी  के साथ मूल्य विवरण को पूर्व में साझा कर चुकी है. यह वाक्य भूतकाल में लिखा गया है और यह तथ्यों के साथ पूर्ण रूप से सही है। 

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केंद्र द्वारा पेश की गई याचिका में कहा गया है कि उक्त नोट मोटे अक्षरों में लिखा गया है . जिसमे यह कहा गया है कि सरकार मूल्य विवरणों पर पीएसी के साथ विमर्श कर चुकी है. पीएसी की रिपोर्ट का  सीएजी परीक्षण कर रही है .रिपोर्ट का संपादित हिस्सा संसद के संज्ञान में है और यह देश के सामने है. इस याचिका के मुताबिक शब्द ‘हैज बीन (हो चुका है)’ भूतकाल के लिए इस्तेमाल हुआ है जिसमे लिखा है कि सरकार कैग के साथ मूल्य विवरण को पहले ही साझा कर चुकी है. यह भूतकाल में है और सही है। इस वाक्य के दूसरे हिस्से में सीएजी  के संबंध में कहा गया है कि कैग की रिपोर्ट का पीएसी परीक्षण कर रही है . फैसले में ‘इज’ की जगह ‘हैज बीन’ का इस्तेमाल हुआ है.
केंद्र ने शीर्ष अदालत के आदेश में आवश्यक संशोधन की मांग करते हुए कहा कि इसी तरह फैसले में यह कथन है कि रिपोर्ट का संपादित हिस्सा संसद के सामने रखा गया. इस बारे में कहा गया कि रिपोर्ट का संपादित हिस्सा संसद के सामने रखा गया और यह सार्वजनिक है.

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याचिका के मुताबिक, नोट में केंद्र ने यह कहा गया है कि पीएसी रिपोर्ट का सीएजी परीक्षण कर रही है. यह प्रक्रिया की व्याख्या है जो आम तौर पर उपयोग में लायी जाती है।  पर फैसले में अंग्रेजी में ‘‘इज’’ यानि ‘‘है’’ की जगह ‘‘हैज बीन’’ अर्थात ‘‘कर चुकी है’’ का इस्तेमाल किया गया है। 


केंद्र सरकार ने ऐसे वक्त पर यह याचिका दायर की है जब विपक्षी कांग्रेस और अन्य ने इस मुद्दे पर सवाल उठाए हैं और सरकार पर सीएजी रिपोर्ट को लेकर शीर्ष न्यायालय को गुमराह किये जाने का आरोप लगाया गया है।
मोदी सरकार को बड़ी राहत देते हुए  सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र के हक़ में फैसला सुनाते हुए कहा राफेल लड़ाकू विमान के सौदे की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी है और इस लेन देन किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं पायी गई जिसपर सवाल उठाये जा सकें। न्यायलय इस सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया से ‘‘संतुष्ट’’ है. शीर्ष अदालत ने विपक्ष द्वारा किये गए जांच की मांग को खारिज करते हुए कहा की यह देश की सुरक्षा का मामला है और इस मामले पर और विवाद की कोई गुंजाईश नहीं रहनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद इस फैसले को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। 

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सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसे फ्रांस से 36 विमान खरीदने के ‘‘संवेदनशील मुद्दे’’ में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं लगता. बता दें कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने राफेल सौदे के मामले में केंद्र की मोदी सरकार पर  आरोप लगाते हुए कहा है की केंद्र ने अपने झूठ बोलने की प्रवित्ति से सुप्रीम कोर्ट को भी नहीं बख्सा है। विपक्षी दलों का केंद्र पर आरोप है की केंद्र ने अपनी झूठ नीति से सुप्रीम कोर्ट और संसद को गुमराह किया है।  आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर अटॉर्नी जनरल को संसद में बुलाए जाने की मांग की है. उन्होंने आरोप लगाया कि राफेल मामले में सरकार ने संसद और सुप्रीम कोर्ट दोनों को भी गुमराह किया किया है। 

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खड़गे ने कहा- सरकार ने कोर्ट में सही तथ्य पेश नहीं किए


सर्वोच्च न्यायालय की ओर से राफेल मामले में फैसला सुनाये जाने के एक दिन बाद, लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष मल्लिकाजुर्न खड़गे ने शनिवार को कहा कि वह महा न्यायवादी और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) को इस मामले की जांच के लिए दबाव बनाएंगे और उनसे पूछेंगे कि कब सीएजी की रिपोर्ट पेश की गई और कब पीएसी ने उसकी जांच की।  कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा बुलाये गए मीडिया कॉन्फ्रेंस में खड़गे ने यहां मीडिया से कहा कि सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष झूठे दस्तावेज पेश कर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया है।
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने वहां दिखाया कि पीएसी रिपोर्ट पेश की गई है और सीएजी ने उसकी जांच की है.’ खड़गे ने कहा, ‘सरकार ने अदालत में यह झूठ बोला कि सीएजी रिपोर्ट को सदन और पीएसी में पेश किया गया है. उन्होंने अदालत में यह भी कहा कि पीएसी ने इसकी जांच की है. उन्होंने यह भी दावा किया कि यह रिपोर्ट सार्वजनिक है. अब केंद्र को बताना होगा की यह कहां है? क्या आपने इसे देखा है? मैं पीएसी के अन्य सदस्यों के समक्ष इस मामले को ले जाने वाला हूं.’

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कोर्ट ने खारिज कर दी थी जांच संबंधी याचिका
सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राफेल सौदे की अदालत की निगरानी में जांच कराने के लिए विपक्ष द्वारा की गई याचिका खारिज कर दी थी. अदालत ने कहा था कि विमान की कीमत सीएजी के साथ साझा की गई और सीएजी की रिपोर्ट की जांच पीएसी ने की. अब इस रिपोर्ट का केवल संपादित भाग ही संसद के समक्ष पेश किया गया है और यह सार्वजनिक है.’
कोर्ट को गुमराह करने के लिए सरकार मांगे माफी

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सरकार पर सर्वोच्च न्यायालय को ‘गुमराह’ करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सरकार को इसके लिए सर्वोच्च न्यायलय और देश की जनता से माफी मांगने को कहा है।  उन्होंने कहा, ‘ रिपोर्ट को कभी भी संसद में पेश नहीं किया गया है. केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय में गलत सूचना पेश की है।  सर्वोच्च न्यायालय में सीएजी रिपोर्ट पर गलत तथ्य पेश कर अदालत को गुमराह करने के लिए नरेंद्र मोदी को माफी मांगनी चाहिए.’
खड़गे ने यह भी कहा कि वे सर्वोच्च न्यायालय का आदर करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कोई जांच एजेंसी नहीं है और केवल संयुक्त संसदीय समिति(जेपीसी) राफेल मामले में कथित भ्रष्टाचार की जांच कर सकती है.

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क्या बोले संजय सिंह?
संजय सिंह ने कहा कि जब सीएजी की कोई जांच रिपोर्ट आई ही नहीं तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कैसे कहा कि ऐसी कोई जांच रिपोर्ट है. सरकार के अटॉर्नी जनरल ने भी सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि सील बंद लिफाफे में जो कुछ भी दिया गया वह उन्होंने नहीं पढ़ा है तो अब उन्होंने करेक्शन का हलफनामा कैसे दिया? उन्हें वह सीलबंद रिपोर्ट कहां से मिली?
आप सांसद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में जिक्र है कि एयरफोर्स प्रमुख ने कीमतों के खुलासे पर आपत्ति की थी. एयरफोर्स चीफ ने यह बयान कब दिया या ऐसा कोई एफिडेविट कब दिया था? नए एफिडेविट में भी सरकार कह रही है कि सीएजी को कीमतों के बारे में जानकारी दे दी गई है लेकिन सीएजी की रिपोर्ट तो जनवरी के बाद आएगी.

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उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हलफनामे के मुताबिक यह माना कि सीएजी और पीएसी कीमतों को लेकर पहले ही जांच कर रही है. शायद इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने राफेल घोटाले में जांच के आदेश नहीं दिए. अगर कोर्ट को यह पता होता कि ऐसी कोई जांच नहीं हुई है तो शायद इस मामले में जांच के आदेश दिए जाते.
सिब्बल बोले – केंद्र ने बोला झूठ

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राफेल पर शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस  कर कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने राफेल के मामले में जो    जो जानकारी दी है उसके सही होने पर संदेह उत्पन्न हो रहा है। इसलिए इस स्थिति को साफ़ करने के लिए यह जरुरी हो जाता है कि पीएसी (लोक लेखा समिति) में अटॉर्नी जनरल को बुलाया जाना चाहिए, जिससे यह साफ हो सके कि कोर्ट में गलत दस्तावेज क्यों जमा कराए गए, जिसका की कभी कोई जिक्र भी नहीं किया गया। यह बेहद संवेदनशील मामला है, जिस पर संसद  में चर्चा किया जाना बेहद जरुरी है। 


कपिल सिब्बल ने आगे कहा कि कांग्रेस इस मामले में हमेशा स्पष्ट रही है कि इस मामले के लिए सुप्रीम कोर्ट सही जगह नहीं है, यहां पर हर तरह की फाइल का खुलासा नहीं किया जा सकता. यह सर्वोच्च न्यायलय के अधिकारछेत्र में भी नहीं आता। . उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले में प्रेस रिपोर्ट और सरकार के हलफनामे का जिक्र किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अनुच्छेद 32 के तहत कोर्ट के न्यायाधिकार के कारण वो  इस मामले का फैसला नहीं कर सकते।